Laqeer ka fakeer
there was a famous Saint who had many students. They all wanted to be great Saint like their teacher but one of them was quite ambitious. He worked hard to get all the theoretical knowledge but lacked common sense and behaviourial applications.
So, one day, The Saint advised his students to dry their washed clothes outside their hut and have drawn a line (laqeer) to fix individual spot for each student. All students made this a routine and continued following this as a rule. But one day, it started raining. All students took their half dried clothes inside their huts but that unique student stick to his line to dry his clothes resulting in getting it more wet.
That was when people started calling him laqeer ka faqeer.. which simply mean to strictly follow something without applying much sense.
लकीर का फकीर न बनें
अंधविश्वास और खोखली मान्यताओं का पिछलग्गू न बनें बल्कि खुल कर इन रूढ़ीवादी परंपराओं का दमन करें. ढकोसलों पर गंभीरता से विचार कर उन्हें खारिज करें.
एक पुरानी कहावत है, ‘लकीर का फकीर बनना’ यानी कहेसुने को गांठ बांध लेना और आंख मूंद कर एक ही ढर्रे पर चलते जाना. यदि घर में धार्मिक मान्यताओं पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है तो घर के बच्चे भी इस में शामिल हो जाते हैं और आंखें मूंदे वही सब करते हैं, जो उन्हें कहा जाता है.
बात सिर्फ पूजाअर्चना या अंधभक्ति तक ही सीमित नहीं है, कई बार तो इन अंधविश्वासों के कारण किशोरों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ जाता है. इस बारे में चंदन कुमार एक वाकेआ सुनाते हैं, कि औल इंडिया मैडिकल प्रवेश परीक्षा के दौरान मेरी मां ने घर से निकलते वक्त मुझे सख्त हिदायत दी कि बगल वाले मंदिर के पुजारी का आशीर्वाद लिए बगैर परीक्षा देने मत जाना और जो मन्नत का धागा है उसे जरूर अपनी कलाई पर बंधवा लेना, इसे भूलना मत.
इस चक्कर में मैं काफी देर तक मंदिर में पुजारी की प्रतीक्षा करता रहा. वे किसी कार्यवश बाहर गए थे. जब वे काफी देर तक नहीं आए तो आखिर मुझे वहां से निकलना पड़ा. न पुजारी आए औैर न मैं धागा अपनी कलाई पर बंधवा पाया. उलटे देर से पहुंचने पर ऐग्जाम में नो ऐंट्री होतेहोते बची.
मेरे जीवन का यह बहुत कड़वा अनुभव था. मैं ने उस दिन से हर बात को पत्थर की लकीर मानना छोड़ दिया. अब मैं सहीगलत का आकलन कर उस बात पर अमल करता हूं.
एक किशोर होने के नाते मैं अपने दोस्तों को भी यही सलाह दूंगा कि लकीर का फकीर न बनें बल्कि अपने विवेक का इस्तेमाल कर कदम बढ़ाएं.
कई बार हमें बोझिल परंपराओं को मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है. हम इन्हें मानने से इनकार नहीं कर पाते. ये सब आज 21वीं सदी में हो रहा है, जब सुपर कंप्यूटर और उन्नत तकनीक के युग में इंसान चांद की यात्रा कर चुका है लेकिन हम आज भी वैचारिक रूप से उन्नत नहीं हुए हैं. अंधविश्वास, ढोंग, जादूटोना आज भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहे हैं और हम बरबस ही अपना अहित न होने की शंका में आंख मूंद कर इन्हें अपनी जिंदगी में उतार रहे हैं.
कुल मिला कर ‘लकीर का फकीर’ बनने की परंपरा को अपने घर से तोड़ने की शुरुआत करें. छोटीछोटी दकियानूसी मान्यताओं मसलन, बिल्ली के रास्ता काटने पर आगे न बढ़ना, हमेशा दही खा कर ही घर से निकलना, छींक आ जाए तो यात्रा रोक देना, जाते वक्त किसी के पीछे से टोकने पर खिन्न होना, शाम को घर में झाड़ू लगाना, टिटहरी की आवाज सुनते ही रामराम करने लगना, रात को पीपल या नीम के पेड़ के आसपास न जाना आदि से बचें.
ऐसे बनाएं खुद को वैचारिक रूप से सशक्त
– सुनीसुनाई बातों पर यकीन न करें. तथ्य एकत्रित करें, फिर उस पर विश्वास करें.
– ऐक्सप्लोरर बनें. आप का ऐक्सप्लोरर नेचर दूसरों को उस बात को न मानने पर विवश कर सकता है.
– टैबू ब्रेकर बनें. इसी से आप दूसरों के लिए प्रेरक बन सकते हैं. यदि आप के लौजिक में दम होगा तो लोग जरूर आप को फौलो करेंगे.
– ‘रिस्क गेनर’ बनें. अंधविश्वासों और खोखली मान्यताओं के खिलाफ चलें. इस से दूसरों में विश्वास भी पैदा होगा और वे आप का अनुसरण भी करेंगे.
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